हिटलर, मोदी और गोएबेल्स

हिटलर सामाजवाद के नारे के साथ सत्ता में आया था. मोदी को मार्क्स इसलिए बताया जा रहा है क्योंकि उनके जेहन में गोएबेल्स समा गया है. गोएबेल्स एक झूठ को सौ बार बोलने पर उसे सच साबित करने का दावा करता था, मोदी जी उससे भी दो कदम आगे हैं. वो झूठ को इतने आत्मविश्वास और मजबूती के साथ बोलते हैं कि एक ही बार में सच लगने लगे. अनायास नहीं जो खुद सवालों के घेरे में है वो दूसरों पर सवाल उठा रहा है. जो खुद भ्रष्टाचार का आरोपी (सहारा, बड़ला प्रकरण) है वो विपक्ष को भ्रष्ट और चोर बता रहा है. जिसके दामन में खून के छींटे हैं वो दूसरों के जरिये अपनी हत्या की आशंका जता रहा है. अमीरों के साथ मजबूती से खड़ा है और उनको खत्म करने की बात कर रहा है. पूरी तरह से गरीबों के खिलाफ है और गरीबी से लड़ने का दावा कर रहा है.
नाकाम नोटबंदी को भी पूरे आत्मविश्वास के साथ कामयाब बता रहा है. आयकर छापे के पूरे अभियान में मिले 3200 करोड़ को सबसे बड़ी सफलता बता रहा है और उसका सरकारी अमला 13 हजार करोड़ के कालाधन धारी महेश शाह पर हाथ नहीं लगा रहा है क्योंकि उसके रिश्ते अमित शाह से बताए जा रहे हैं. मायावती के खाते में 104 करोड़ की खबर पूरे जमीन से लेकर आसमान तक में गूंज जाती है. उसी समय बीजेपी द्वारा बिहार में जमीनों की खरीदारी और यूपी में हजारों चार चक्का गाड़ियों और लाखों बाइकों की खरीद पर सवाल नहीं उठता है. 500-500 करोड़ की दो-दो शादियों को नजरंदाज कर दिया जाता है. हद तो तब हो जाती है जब मोदी जी अपने भ्रष्टाचार को भी विपक्ष के मत्थे मढ़ देने से बाज नहीं आते. उत्तराखंड में जिस समय स्कूटर के खाने का कांग्रेस पर आरोप लगा रहे थे उसी समय उसके लिए जिम्मेदार विजय बहुगुणा उनके साथ मंच पर बैठे थे. ईमानदारी तब कही जाती जब बहुगुणा का कान पकड़ कर मंच से उतार दिया जाता और फिर इस बात को मंच से बोला जाता लेकिन मोदी जी ने शायद गांधी जी के सत्य और अहिंसा को पोरबंदर में ही दफन कर दिया था. उनकी सिर्फ स्वच्छता लेकर साथ आये थे और अब उसे भी इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया गया है.
दरअसल इन सभी कवायदों के जरिये मोदी जी कुछ न करते हुए भी बहुत कुछ करते रहने का अहसास दिलाना चाहते हैं. कहां तो कहा जा रहा था कि वो 24 में 26 घंटे दफ्तर में काम करते हैं अब उतना ही समय वो दफ्तर छोड़कर रैलियों में लगा रहे हैं. ये किस सरकारी काम का हिस्सा है? इसे किसी के लिए भी समझ पाना मुश्किल है लेकिन उनके समर्थक इसे सबसे जरूरी काम समझते हैं. नोटबंदी से बैंकों के मालामाल होने के बाद कारपोरेट जगत की बांछे खिल गयी हैं. अब जनता के गुस्से पर पानी के जुमले फेंकने का काम हो रहा है जिसमें मोदी जी को महारत हासिल है. पहले बैंकों के मालिक, अधिकारी और कर्मचारी मालामाल हुए. अब खाने की बारी इनकम टैक्स के अधिकारियों और कर्मचारियों की है. बारी-बारी से कारपोरेट और भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था के गिद्ध कतारों में खड़ी लाशों का शिकार कर रहे हैं.
सरकारी डकैती की इससे बड़ी नजीर कोई दूसरी नहीं मिलेगी जिसमें अपनी ही जनता को लूटकर व्यवस्था की गाड़ी चलायी जा रही है. आपकी मेहनत की कमाई को छीनकर आपको ही नहीं दिया जा रहा है और उसे पाने के लिए दूसरी तरह की हजार शर्तें रख दी जा रही हैं. दरअसल आधी दुनिया घूमने के बाद भी जब चवन्नी का निवेश नहीं हुआ तब कारपोरेट गिद्धों ने यही रास्ता निकाला. सच में यह कारपोरेट की जनता पर सर्जिकल स्ट्राइक थी. इसकी मार जनता बहुत दिनों तक महसूस करेगी लेकिन मोदी जी को ये गलतफहमी निकाल देनी चाहिए कि वो सह कर चुप बैठ जाएगी या इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देगी. जिस तरह से सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान का मनोबल बढ़ गया और उसने हमले तेज कर दिए. उसी तरह से जनता भी अपने ऊपर हमलों का जवाब जरूर देगी. संभव हुआ तो वो सड़कर उतर कर नहीं तो चुनाव का इंतजार करेगी.

– महेंद्र मिश्रा
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)



Author: Rohit Sharma
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