तानाशाह और मुर्गा

एक तानाशाह के शासन के दौर की बात है. एक दिन तानाशाह अपने दरबार में एक ज़िंदा मुर्गा लेकर आया और एक एक कर के उस मुर्गे के पंख उखाड़ने लगा.
मुर्गा दर्द से कराहने लगा, उसकी चमड़ी के छिद्रों से खून बहने लगा.

ह्रदय को झकझोरने वाला क्रंदन मुर्गा करने लगा, लेकिन इसके बावजूद तानाशाह बिना दयाभाव उसके पंख एक एक कर उखाड़ता रहा जब तक की वो मुर्गा पूरी तरह नंगा न हो गया.
इसके बाद तानाशाह ने उसे ज़मीन पर फेंक दिया और अपने पाकेट से दाने निकालकर उस असहाय मुर्गे की और फेंक दिए. रुग्ण नि : शक्त मुर्गा उन फेंके गए दानो को खाने लगा. जैसे ही तानाशाह जाने को हुआ वह मुर्गा उनके पैरो में आकर बैठ गया.
अब तानाशाह ने अपने दरबार की तरफ मुखातिब होकर कहा – ” यह मुर्गा लोगों, जनता, आवाम का प्रतीक है. आप इन्हें नि : शक्त करे, इनके प्रति निर्दयी बने , इन्हें पीटे और छोड़ दे. और यदि ऐसा करने के बाद आप इन्हें इनकी कमज़ोर हालत पर तरस खाकर कुछ दाने डालेंगे, ये जीवन भर आपका अंध अनुसरण करेंगे. ये सोचेंगे की आप ही हमेशा के लिए इनके ‘ हीरो ‘ है. ये यह भूल जाएंगे की इनको ऐसी स्थिति में लाने वाले आप ही है. “



Author: Rohit Sharma
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