कहानीःः मगरमच्छ और निकम्मा मछुआरा

  • एक निकम्मा मछुआरा था, उसे प्रसिद्धि पाने का बड़ा शौक था। उसने एक योजना बनाई। अपने निवास स्थान से सुदूर एक गाँव में आकर रहने लगा, जहाँ के लोगों में तालाब के मगरमच्छों का खौफ था। उस गाँव में उसने अपना बड़ा भौकाल बनाया कि वो मछली नहीं मगरमच्छ पकड़ता है!

गाँव के लोग मछुआरे की हिम्मत की बड़ी दाद देने लगे! गाँव के सारे आवारा लड़के उसके भक्त बन गए!! बड़े बुजुर्ग बच्चे औरत जो भी मिलता, मछुआरा उनको अपने बहादुरी के किस्से सुनाना शुरू कर देता, लोग उसके गप्पे सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते।

साल दो साल यूँ ही चलता रहा। अब तक किसी ने भी अपनी आँखों से उसे मगरमच्छ पकड़ते नहीं देखा था। गाँव के लोग अब कानाफूसी करने लगे कि लगता है ये ठीक से मछली भी नहीं पकड़ पाता होगा… मगरमच्छ की तो बात ही छोड़ो! जल्द ही ये चर्चा गाँव की हर गली, हर नुक्कड़ पर होने लगी।

मछुआरे को अपनी इज़्ज़त की वाट लगती दिखने लगी। एक दिन वो चुपचाप मार्केट गया और वहां से मजबूत धागे वाले कई बड़े बड़े जाल खरीद कर लाया। अपने चमचे भक्तो को उसने खिलाया पिलाया और कहा जाओ गाँव के सभी तालाबों में एक साथ जाल डालो, गाँव में डुगडुगी पिटवा दो की मछुआरा मगरमच्छ पकड़ने का लाइव शो करने वाला है।

दूसरे दिन उत्साहित लोग उसका शो देखने इकठ्ठा हो गए। चारो तरफ जय जयकार होने लगी!

एक ऊँचे टीले पर खड़े होकर उसने लोगों को संबोधित किया- मितरों… आज मैं तालाब के सारे मगरमच्छों को एक साथ पकडूँगा। चूँकि मगरमच्छ एक तालाब से दूसरे तालाब में भाग जाता है इसलिए सभी तालाबों में एक साथ जाल डलवाया हूँ।

उसने ग्रामवासियों से आह्वान किया देखिये ये अति पुनीत कार्य है, ग्राम हित का कार्य है। आप सभी लोग ग्राम हित में जाल खिंचवाने में मदद कीजिये। लोग खुशी-खुशी जाल खींचने में जुट गए। वो जाल में फंसी मछलियों को निकलवाकर इकठ्ठा करवाता रहा। दो तीन दिन में ही मछलियों का ढेर लग गया पर एक भी मगरमच्छ पकड़ नहीं आया। लोगों का सब्र अब जबाब देने लगा था। लोग पूछने लगे कब पकड़ोगे मगरमच्छ…?

वो फिर ऊँचे वाले टीले पर खड़ा हुआ और बोला- मितरों… मूल मुद्दा ये नहीं है कि मैंने मगरमच्छ पकड़ा या नहीं पकड़ा। मूल मुद्दा ये है कि मगरमच्छ की मौत होनी चाहिए। देखो, मैंने तालाब की सारी मछलियां पकड़वा ली है। अब जब मछली ही नही रहेगी तो मगरमच्छ खायेगा क्या? और जब खाने को नही मिलेगा तो वो खुद ही मर जायेगा!

ये बात सुनकर उसके चमचे भक्त जयजयकार करते बोले- वाह गुरु जी…! वाह गुरु जी…!! क्या मास्टरस्ट्रोक मारा है… ऐसा तो किसी ने सोचा ही नही था! मछुआरा आगे बोला- मितरों… ये पकड़ी हुयी मछलियों को शहर के मार्केट में ऊँचे दाम पर बेंचकर प्राप्त धन को ग्रामहित में लगा दिया जायेगा। और उसने सब मछलियां शहर भिजवा दी। उधर आम जनता परेशान थी। सब काम धंधा छोड़कर ‘ग्रामहित’ के कार्य में लगी थी। कुछ के घर खाने के लाले पड़ गए। कुछ अति उत्साह में तालाब में डूब गए, कुछ पेड़ पर लटक गये, अब तालाब में मछलिया भी नहीं थीं, सो उनका रोजगार भी छिन गया। उसके चमचे भक्त इतने बेशर्म निकले की अब भी खुश थे, कह रहे थे अब ग्रामहित में कुछ बलिदान तो करना ही होगा!

नोट: इस कहानी का भारत की नोटबंदी से कोई लेना देना नहीं है।



Author: Rohit Sharma
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