पेटीएम कंपनी का स्वामित्व

पेटीएम कंपनी का स्वामित्व किसके पास है यह सवाल बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इस कंपनी के साथ भारत सरकार ने जियो की तरह सभी देशवासियों के आधार कार्ड के डाटा को साझा किया है, और इसी डाटा से कंपनी ने कई ग्राहक की बायोमेट्रिक पध्दति से e-kyc को कंप्लीट किया है.
पेटीएम को irctc यानि रेलवे के टिकटों की खरीदी बिक्री से सीधे जोड़ा गया है इसके लिए सिर्फ इसी कंपनी का पेमेंट गेटवे यूज़ किये जाने की खबर है,और तो और नैशनल हाईवे अथॉरिटी के चेयरमैन राघव चंद्रा ने माना है कि पेटीएम ने ऑटोमेटिक टोल कलेक्शन के कॉन्ट्रेक्ट को हासिल कर लिया है.
सरकार दिनप्रतिदिन इसे सरकारी योजनाओं से जोड़े जा रही है,मेट्रो के टिकट, बिजली बिल का भुगतान , आदि सेवाओ से paytm को पहले से ही जोड़ लिया गया है………..
भारत में होने वाले क्रिकेट मैच के टिकट को बेचने का पहला अधिकार भी इसी कम्पनी के पास है,
यानी यह कंपनी बड़े पैमाने पर बिना स्पष्ट बैंकिंग लाइसेंस लिए भारत के नागरिकों के धन का आरहण और वितरणं कर रही है और रिजर्व बैंक ने इसे मात्र डिजिटल वालेट खोलने की अनुमति दी है तो इसके स्वामित्व को लेकर प्रश्न खड़े किये जाना सामयिक ही नहीं बल्कि अति महत्वपूर्ण विषय है.
विजय शेखर शर्मा जिन्हें इस कंपनी का मालिक बताया जाता है उनकी इस कम्पनी मे भागीदारी मात्र 20% की है यह सिर्फ २०% का हिस्सेदार को पूरी कम्पनी की कमान इसलिए सोपी गयी है ताकि इस कम्पनी के भारतीय अधिपत्य की कहानी से लोगो को बहलाया जा सके.
41% की भागीदारी चीन कीअलीबाबा कम्पनी के पेमेन्ट गेटवे अलीपे की है, कहते है कि रतन टाटा की एक छोटी सी हिस्सेदारी इस कम्पनी मे है कितनी है यह किसी को नहीं मालूम.
यानि बचे हुए 39% पर अँधेरा बरक़रार है लेकिन इस अँधेरे पर प्रतिष्ठित पत्रिका बिजनेस स्टैण्डर्ड का 30 नवम्बर 2016 का अंक रोशनी डालता है इस खबर के मुताबिक “पेटीएम कंपनी के डॉक्यूमेंट बताते है कि पिछले कुछ महीनो मे केमन आइलैंड की एक कंपनी व्दारा पेटीएम को 600000 शेयर के बदले 60 मिलियन डॉलर यानि भारतीय मुद्रा मे 402 करोड़ का भुगतान किया गया है…और चाइनीज भागीदारी के अतिरिक्त इस बात को भी आरएसएस को भी संज्ञान में लेना चाहिए”.
कैमेंन आइलैंड टैक्स हेवेन कंट्री मे शुमार किया जाता है जैसा क़ि पनामा भी है और यह भी माना जाता है कि बड़े पैमाने पर दुनिया भर के भ्रष्ट राजनेता और ब्यूरोक्रेट का धन इन कंपनियों मे लगाया जाता है, और इन ऑफशोर कम्पनियो के मालिकों के हितों उस टैक्स हेवन देशों की सरकारें करती है.
अगर यह खबर सच है तो आप खुद अंदाजा लगा सकते है कि देश मे इस कंपनी से किसके हित जुड़े हुए है और इन टैक्स हेवन देशों के जरिये कोन अपना कालधन सफ़ेद कर रहा है.
लेकिन कुछ भी हो एक संदिग्ध कंपनी को भारतीय वित्त व्यवस्था से जोड़ना राष्ट्रहित के खिलाफ है.
Girish Malviya



Author: Rohit Sharma
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