देश की बढ़ती दुर्दशा : जिम्मेवार कौन ?

सन् 1947 ई. की आधी रात को हुई सत्ता हस्तांतरण की अनोखी घटना न केवल देश की विशाल आन्दोलनरत् क्रांतिकारी जनता के आंखों में धूल झोंकने के उद्देश्य से आयोजित की गई थी अपितु इसी के साथ ही देश का चरित्र भी औपनिवेशिक से बदल कर अर्ध-औपनिवेशिकता का चोला पहन लिया. पूंजीवादी व्यवस्था ने सामंतवाद से गठजोड़ कायम कर अर्ध-सामंतवाद में बदल गया. अर्ध-सामंतवादी और अर्ध-औपनिवेशिक इस व्यवस्था में जनता का भयानक शोषण-दोहन पूर्व के औपनिवेशिक काल से भी अधिक भयानक और क्रूरतापूर्वक किया जाने लगा. इस देश के सत्ता पर काबिज अंग्रेजी हुकूमत के दलाल और जासूसों ने पूर्ण खिदमत के साथ अपनी वफादारी आज तक निभा रहे हैं.
परन्तु, क्रांतिकारी जनता जो अंग्रेजी साम्राज्यवाद के इन चालों को समझ गई थी, आज भी इसके खिलाफ पूरे देश भर में आवाज बुलन्द कर रही है. क्रांतिकारी जनता को पथभ्रष्ट करने के लिए यह शासक वर्ग अंग्रेजों के बनाये लार्ड-मैकाले वाली शिक्षण-पद्धति को हू-ब-हू लागू कर देश भर में भयानक बेरोजगारी, बेकारी, भूखमरी, अराजकता, भ्रष्टाचार, क्रूर फौजी तानाशाही, फर्जी मुठभेड़ों में हत्या आदि की एक विशाल पैदावार तैयार की है.
वर्तमान भाजपा शासित शासक वर्ग ने तो पूरी वेगैरत और निर्लज्जतापूर्वक देश के तमाम साधन और संसाधनों को अन्तर्राष्ट्रीय पूंजी के हाथों में पूरी तरह गिरवी रखने के लिए दुनिया के तमाम देशों में पागलों की भांति चक्कर काट रहा है.
इतना ही नहीं, अपने कुत्सिक इरादों को परवान चढ़ाने के लिए देश की जनता के घरों से खींच कर पूरी धन राशि इन देशी और अन्तर्राष्ट्रीय पूंजी की भंेट चढ़ाने के लिए तमाम तरह के हथकण्डों को इस्तेमाल कर रहा है. नोटबंदी जैसे भयानक जनविरोधी कदम भी इसी परिप्रेक्ष्य में लागू किया गया है.- रोहित शर्मा



Author: Rohit Sharma
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