दंतेवाड़ा जिले के किरंदुल थाना क्षेत्र में माओवादी के नाम पर एक फर्जी मुठभेड़

”पुलिस मेरे भाई को नक्सली कहती है. और मुझसे भी कहती है कि मैं उसे नक्सली कहूँ. मैं क्यों कहूँ? — बामन कड़ती

अभी भीमा कड़ती के भाई बामन कड़ती से फोन पर बात किया. उन्होंने कहा कि मेरे भाई और साली सुकमति को पुलिस ने मार दिया.

भीमा और सुकमति शनिवार को बाजार के लिये निकले थे. बाजार से सामान लेकर लौटते समय रास्ते से पुलिस वाले दोनों को ले गये. दंतेवाड़ा पुलिस शनिवार रात तक दोनों को कहां रखी थी, बामन कड़ती यह सवाल करते हैं.

पुलिस रविवार सुबह 9 बजे दोनों की लाश सौंपती है. बामन कड़ती कहते हैं कि लाश पहुंचाने के लिए हमारे घर का पता किसने दिया?

जब दोनों शनिवार को ही पकडे़ गये तो फिर उन्हें मार क्यों दिया गया?

मेरा भाई खेती कर परिवार चलाता है. मां की देखभाल करता है और मैं यहां किरंदुल में एनएमडीसी में लेबर हूं और यहीं रहता हूं. पुलिस वाले मुझसे मेरे भाई को नक्सली कहने को कहते हैं. मैं अपने भाई को नक्सली क्यों कहूं जबकि ऐसा कुछ भी नही है.

मेरे भाई को और ऐसे ही बस्तर के दूसरे आदिवासियों को मार रहे हैं. क्या कहीं ऐसा होता है?

पुलिस वाले कहते हैं, मेरे भाई के पास से बहुत सारी दवाईयां, पिस्टल, और रायफल मिला है, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है.

मेरी 13 साल की साली सुकमति जिसका ब्याह होने वाला था, वह भी साथ गई थी. उसको भी मार दिया. दोनों मेरे घर आये थे. मेरी पत्नी से उसने मेरे बारे में पूछा. मेरी पत्नी ने उसे खाना खाने के लिए कहा, पर उसने कहा, वह बाद खाएगा और बाजार चला गया.

वह सायकिल से आया था लेकिन सायकिल अभी तक नहीं मिली है.

पोस्टमार्टम के सवाल पर बामन ने कहा कि पुलिस वाले पोस्टमार्टम पहले से करवा कर लाये थे.

मेरी साली साड़ी पहने हुई थी लेकिन उसे फ्राक पहना दिया गया था. मेरा भाई भी दूसरे कपड़े पहना था.

क्या इसी तरह मारा जायेगा हमें? ऐसा रहा तो हम सब कहाँ रहेंगे?

(दंतेवाड़ा जिले के किरंदुल थाना क्षेत्र में माओवादी के नाम पर एक फर्जी मुठभेड़ में किरंदुल बाजार से साईकिल से वापिस आ रहे गमपुड़ गांव के रहने वाले सुकमति हेमला और भीमा कड़ती को हिरोली के जंगल में पकड़कर दिया गया.)

Vikas K. Sahu



Author: Rohit Sharma
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