जेटली का प्रेस कॉन्फ्रेंस

गुस्सा तब आता है जब जेटली प्रेस कॉन्फ्रेंस मे एक के बाद एक गर्वोक्तिया करते जाते हैं , पता नहीं लोग क्यों उसे प्रेस कॉन्फ्रेंस कहते हैं यहाँ से तो वह एकालाप ही नजर आता है, …
जैसे जादूगर हैट से कबूतर निकलता है कुछ उसी अंदाज से जेटली नोटबंदी के हैट से निकले अप्रत्यक्ष करो की बढ़ती रकम के आंकङे गिनाने लगते हैं, और जादूगर के जादू से लोग जिस तरह लोग भौचक्के रह जाते हैं उसी प्रकार हम भी ठगा सा महसूस करने लगते है कि यह व्यक्ति इकोनॉमिक मोर्चे पर कमजोर होती स्थिति को स्वीकार करने को तैयार नहीं है…
नोटबंदी की मार ने गत दिसंबर महीने में वाहन उद्योग की कमर बुरी तरह तोड़ दी और घरेलू बाजार में वाहनों की बिक्री में सदी की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गयी…
वाहन निर्माता कंपनियों के संगठन सियाम द्वारा आज यहाँ जारी आँकड़ों के अनुसार, देश में सभी श्रेणी के सभी वाहनों की कुल बिक्री 18.66 प्रतिशत घट गयी है यह दिसंबर 2000 के बाद की सबसे तेज गिरावट है…
देश में कई हिस्सों से किसानों के अपनी तैयार फसलों को खेतों में जोतने की खबरें आ रही है क्योंकि उनको नोटबंदी के चलते उसका दाम नहीं मिल रहा था तो उसके बावजूद सरकार का कहना है कि किसानों को नोटबंदी से फायदा हुआ है क्योंकि रबी फसलों का क्षेत्रफल बढ़ा है और खाद की बिक्री ज्यादा हुई है। लेकिन खरीफ की ज्यादातर फसलें अपनी कीमत से नीचे बिक रही हैं साफ़ दिख रहा है कि सरकार झूठ बोल रही है …
रियल स्टेट मे कोई मांग ही नही बची है, कंस्ट्रक्शन वह सेक्टर है जो कृषि के बाद सबसे अधिक रोजगार अवसर पैदा करता रहा है। नोटबंदी के बाद इस सेक्टर में करोड़ों अनस्किल्ड लोगों ने रोजगार खोया है चौराहों पर मजदूरो की संख्या बढती जा रही है
नोटबंदी का सीधा असर उपभोक्ता बाजार पर हुआ है. उपभोक्ताओं को नकदी संकट का सामना करना पड़ रहा है, जिसका असर उपभोक्ता सामानों की खरीदारी पर पड़ा है उद्योग मंदी से बुरी तरह से प्रभावित हुए है लेकिन सरकार मानने को तैयार नहीं है.
नोटबंदी ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है बिहार, झारखंड और ओडिशा में लोगों की आय में गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पश्चिम बंगाल तथा केरल से अधिक की गिरावट आई है.
सरकार मान रही है कि बैंकों में बहुत पैसा आ गया है इससे कर्ज सस्ता होगा लेकिन असलियत यह है कि कोई कर्ज लेने को तैयार नहीं है केवल 5.1 फीसदी की क्रेडिट ग्रोथ रह गयी है जो कई दशक का निचला स्तर है यही रेट 2005 में 39 फीसदी था लेकिन वित्तमंत्री के कानो पर जू नहीं रेंग रही है.
2016-17 के शुरूआती सात महीनों के आंकड़ों के आधार पर जीडीपी के पहले एडवांस एस्टीमेट जारी किया है जिनमें जीडीपी की ग्रोथ 7.1 फीसदी पर रहने का अनुमान लगाया गया है यह पिछले साल की 7.6 फीसदी की जीडीपी ग्रोथ से कम है लेकिन नवंबर में नोटबंदी के फैसले ने जिस तरह से इकोनॉमी के अधिकांश क्षेत्रों को पटरी से उतारा है. उसके चलते जीडीपी ग्रोथ के एक से दो फीसदी तक गिरने की संभावना है और तीसरी तिमाही में तो इसके गिरकर पांच फीसदी पर आ जाने का अनुमान लगाया जा रहा है…
स्टैंडर्ड एंड पुअर्स, बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच और एशियाई विकास बैंक ने नोट बंदी और इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर को लेकर जो रिपोर्ट जारी की हैं उसे किसी भी तरह से उत्साहजनक नहीं कहा जा सकता है …
हालात भयावह होते जा रहे है और सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग आंकड़े बाजी के करतब दिखाने मे मगन है…

girish malviya



Author: Rohit Sharma
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