“कैशलेस का असली लाभ” किसे हो रहा है ?

मेरी साधारण समझ के अनुसार हर तरह के व्यापार धंधों के लिए कैशलेस का मतलब क्रेडिट और डेबिट कार्ड आधारित व्यवस्था ही है……………..
यह एक तरह की पेमेंट बैंकिग है……………..
क्या आपको इस व्यवस्था के लिए तैयारी दिख रही है ,…..एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत को कैशलेस इकोनोमी बनाने के लिए दो करोड़ पीओएस( swipe mahine) की जरुरत है। अभी लगभग सिर्फ 12 लाख स्वाइप मशीन हैं जो भारत के आकार को देखते हुए काफी कम है। इसका एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण व अ‌र्द्ध शहरी क्षेत्रों में लगाया जाएगा वहा भी पहले बिजली और इंटरनेट की उपलब्धता को सुनिश्चित करना होगा तभी यह पध्दति कारगर होगी……………….
अब इस पध्दति की असलियत जान लीजिए जिसके लिए यह लेख लिखा गया है ………………..
पहला इन् मशीनों को विदेशो से आयात किया जा रहा है जिससे बड़े पैमाने पर देश की पूंजी विदेश में जा रही है……………
दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है, क़ि देश के लगभग 80 फीसदी डेबिट और क्रेडिट कार्ड ,मास्टर और वीजा कंपनियों के है जो पूर्ण रूप से विदेशी है …….हर ट्रांसिक्शन पर भारतीय बैंके लगभग 2 रुपये 80 पैसे मिनिमम इन कंपनियों को देती है और कैशलेस के इस दौर में हमारे वित्तीय लेन-देन का लगभग आधे से ज्यादा तंत्र इन्हीं कार्डों पर आश्रित हो गया है ………
चाहे आप मोबाइल एप से भुगतान करे चाहे आप अन्य किसी और माध्यम का सहारा ले,……आप अपने हर ट्रांसिक्शन से इन विदेशी कंपनियों को लाभ पुहंचा रहे है और इसीलिए मास्टर कार्ड ने कैशलेस के समर्थन मे देश भर के बड़े अख़बारों मे पूरे पेज के विज्ञापन दिए है…………………
इन ट्रांसिक्शन से इन विदेशी कम्पनियो को कितना अधिक फायदा है इसे इस उदाहरण से समझें कि यदि आपने किसी वस्तु के लिए आनलाइन पेमेंट किया या कोई बिल अदा किया। या स्वाइप मशीन से भुगतान किया ………तकनीकी कारणों से पेमेंट फेल हो गया लेकिन राशि आपके खाते से कट गई तो जितने दिन राशि आपके खाते में वापस नहीं आएगी, उसमें इन विदेशी कम्पनियों का बहुत फायदा होगा एक तो अंतरणों की संख्या एक से बढ़कर दो हो जाएगी। ऊपर से, पेमेंट के लम्बित होने के वक्त का ब्याज भी उनकी जेब में जाएगा। ………………..
चूंकि कैशलेस की तलवार अब बैंकों के सर पर लटकी है इसलिए इन विदेशी कंपनियों से सेवाएं लेना भी बैंकों की मजबूरी है और इन्हें ही भारत के कैशलेस होने से असली फायदा हुआ है यह कम्पनी अपनी शर्तों पर ही काम किया करती हैं इन्ही कंपनियों के सेवा शुल्क भी इतना ज्यादा है कि बैंकें एटीएम स्थापना के बाद अन्य शुल्क लगाकर इस खर्च की भरपाई किया करती हैं।……………
ऐसे में आवश्यकता थी कि किसी न किसी तरह विदेशी कार्डों का आधिपत्य समाप्त या बेहद कम कर दिया जाए 2011-12 मे rupay नामक पेमेंट सिस्टम की स्थापना इसी मोनोपॉली को तोड़ने के लिए की गयी थी लेकिन अभी भी यह सिस्टम जनधन खातों तक ही सीमित है बड़े ट्रासिक्शन की इसमें सुविधा नहीं है,……….सभी बड़े देशों ने कैशलेस अपनाने से पहले अपने देश के पेमेंट बैंकिंग को मजबूत किया है और उसके बाद ही कैशलेस को लागू किया है …………………
बिना इस सिस्टम को मजबूत किये इस कैशलेस की बात करना देश के रुपये में से विदेशियों को हिस्सा देना ही है और विडम्बना यह है कि कल तक चाइनीज सामान खरीदने के विरोधी आज इन विदेशी paytm और मास्टर और वीजा की गुलामी करने को सहर्ष तैयार है………………
कैशलेस से सम्बंधित इन लेखों की अगली कड़ी मे सिक्योरिटी पर चर्चा करंगे…

by Girish Malviya



Author: Rohit Sharma
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