कैशलेस ईकोनोमी मेंं व्याप्त अराजकता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरणः स्टाँक मार्केट

शेयरों का सट्टाबाजार स्टॉक एक्सचेंज पूरी तरह ‘कैशलेस’ होता है।
काले धन का यह प्रमुख अड्डा है, सबसे ज्यादा स्कैम, घपले, ठगी, आदि यहीं होती है। 1995 के हर्षद मेहता गिरोह ने तो पूरे बैंकिंग सिस्टम के ही घुटने टिकवा दिए थे, कितने लालच में आये मध्यम वर्गीय लोग आत्महत्या तक को मजबूर हुए थे। 2001 में केतन पारीख गिरोह ने फिर से बैंकिंग सिस्टम को तगड़ा झटका दिया था। पर इन दोनों ने कैश कतई इस्तेमाल नहीं किया था, सब कुछ बैंकिंग चैनल के जरिये हुआ था। शायद मोदी सरकार की नजर में यह घपला था ही नहीं, इन दोनों को तो ईनाम मिलना चाहिए, कैशलेस के ब्रांड एम्बेसडर होने का!
आयात में कीमत से ज्यादा बिल (overinvoicing) और निर्यात में कीमत से कम बिल (underinvoicing) भी ‘कैशलेस’ और आजकल तो डिजिटल भी होता है। इसका पैसा जब मॉरीशस-सिंगापुर होते हुए P-Notes के जरिये FII निवेश के रूप में आता है तो वह भी कैशलेश और डिजिटल होता है। बड़े प्रोजेक्ट्स के cost-padding के जरिये जो बैंक कर्ज मारा जाता है वह भी कैशलेस। और विजय माल्या ने जो 8 हजार करोड़ का चूना लगाया वह तो पक्का कैशलेस और डिजिटल था!
वैसे हवाला भी लगभग ‘कैशलेस’ ही होता है। दुबई में हवाला ऑपरेटर को पैसा दिया और मुम्बई में उसके एजेंट ने पैसा दिया। कैश एक जगह से दूसरी जगह आता-जाता नहीं। रफ़्तार में तो बैंक या कोई और डिजिटल चैनल कहीं मुकाबले में भी नहीं।



Author: Rohit Sharma
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