आधी रात वाली तथाकथित आजादी की नौटंकी

हमारे आसपास घटित होने वाली हर घटना अपने मूल स्वरूप में अपने अन्तर्राष्ट्रीय स्वभाव को समेटे होती है. ठीक इसी तरह हमारी तथाकिथत आजादी की अनोखी घटना घटना भी अपने स्वरूप में अन्तर्राष्ट्रीय स्वभाव को समेटे हुए थी. कुछ तथ्यों में इसकी पड़ताल करते हैं कि आखिर इस आधी रात वाली तथाकथित आजादी की नौटंकी क्या था ?
अंग्रेजों के साथ सम्पन्न हुई गोपनीय समझौतों के अनुसार प्रतिवर्ष 30 हजार टन गौ-मांस का निर्यात हमारे यहां से ब्रिटेन को किया जाता है साथ ही ब्रिटेन की महारानी को हमारे देश से 10 अरब रूपया पेंशन के बतौर पर प्रतिवर्ष भुगतान किया जाता है यह एक ऐसा अनोखा तथ्य है जो हमारे आजाद होने पर ही सवालिया निशान लगा जाता है.

हम सभी जानते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष में दो घड़ा काम कर रहा था. एक शांतिप्रिय कांग्रेस और दूसरा घड़ा हिंसक क्रांति के जरिये अंग्रेजों को भारत की भूमि से भगाना चाहता था. लेकिन 1947 आते-आते दोनों ही घड़े कमजोर पड़ गये थे. हिंसक क्रांति के जरिये आजादी चाहने वालों में अधिकांश को फांसी अथवा हत्या या फिर जेल में डाल दिया गया था जबकि शांतिप्रिय घड़ा जनता के बीच अपना विश्वास खो बैठा था.

द्वितीय विश्व-युद्ध की आग से निकले अंग्रेजी हुकूमत इतना कमजोर हो गया था कि भारत में जनता के बीच सुलग रही आग को रोक पाने में सक्षम नहीं था. अनेक नाना-प्रकारेण कारणों से अंग्रेजी हुकूमत ने शातिप्रिय घड़ों को फिर एक सेफ्टी वाॅल्व के रूप में इस्तेमाल किया और पुनः गठन कर 1947 को इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट, 1947 नाम का एक एक्ट बनाया. इसी एक्ट के तहत् अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण का समझौता कांग्रेस के साथ किया, जिसका देश की जनता ने भरसक विरोध किया परन्तु गांधी-जिन्ना-नेहरू-पटेल आदि किसी ने न तो इस एक्ट का विरोध किया और न ही इस सत्ता हस्तांतरण के समझौते का अर्थात् तथाकथित सभी नेताओं ने ब्रिटिश उपनिवेश यानि ब्रिटेन की दासता स्वीकार कर लिया.

कहा तो यह भी जा रहा है कि 15 अगस्त 1947 को भारत को 99 साल की लीज पर ब्रिटेन ने दिया दिया है.

भारत को छद्म स्वतन्त्रता देने का विचार तो 1942 में ही कर लिया गया था. 1948 तक का समय सुनिश्चित करना तो महज एक बहाना था.

1947 के जून महीने में यह ज्ञात हुआ कि मुहम्मद अली जिन्ना, जो वास्तव में पुन्जामल ठक्कर का पोता थे, उनकी टी.बी. की बीमारी अन्तिम स्तर पर है जिस कारण उसकी अधिक से अधिक 1 वर्ष की आयु शेष बची है. तभी भारत की (छद्म) स्वतन्त्रता और भारत- विभाजन की प्रक्रिया को तेज कर दिया गया.

4 जुलाई सन् 1947 से आरम्भ हुई सत्ता हस्तांतरण की यह प्रक्रिया 14 अगस्त सन् 1947 तक मात्र 40 दिनों में ही अंग्रेजों के कूटनीतिक षड्यन्त्रों के तहत सम्पूर्ण हुई. गांधी ने कहा था कि विभाजन मेरी लाश पर होगा जिसे सुनकर वर्तमान पाकिस्तानी पंजाब में रहने वाले हिन्दुओं ने वर्तमान भारतीय क्षेत्रों में आकर बसने के अपने निर्णय को बदल दिया. जिस कारण 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बन गया और हिन्दू वहीं फँस गये. इस प्रकार नरसंहार का एक ऐतिहासिक काल आरम्भ हुआ. 3 करोड़ हिन्दू पाकिस्तान के जबड़े में फँसे रह गए और इस भयानक नरसंहार के बीच किसी ने ध्यान ही नहीं दिया कि आखिर हुआ क्या ?

1946 के चुनावों के बाद जो सर्वदलीय संसद बनी उसमें विभाजन के प्रस्ताव को पारित करने हेतु संयुक्त रूप से 157 वोट समर्थन हेतु डाले गये.उसके बाद की समस्त प्रक्रिया दिल्ली में औरंगजेब रोड स्थित मुहम्मद अली जिन्ना के घर पर ही सम्पूर्ण हुई.

जिन्ना जहाँ भू-तल पर नेहरू-गाँधी लार्ड माउंटबैटन के साथ कानूनी सहमतियाँ बना रहे थे, वहीं प्रथम तल पर जिन्ना अपनी कुछ सम्पत्तियाँ और औरंगजेब रोड पर स्थित अपने घर को बेचने की प्रक्रिया पूरी कर रहे थे. मुहम्मद अली जिन्ना पेशे से एक वकील थे. नेहरू एक वकील थे और गांधी एक वकील थे. उस समय के अधिकतर नेता वकील ही थे.
वे सब जानते थे कि यह सम्पूर्ण स्वतन्त्रता नहीँ, अपितु अल्पकालिक स्वतन्त्रता है, अल्पकालिक स्वतन्त्रता ! यह छद्म स्वतन्त्रता ही थी इससे अधिक और कुछ नहीं. सत्ता का हस्तांतरण हुआ था, पूर्ण आजादी नहीं मिली थी अर्थात् सत्ता तो अंग्रेजों के पास ही रहेगी और उनकी देखरेख में शासन की व्यवस्था सम्भालेंगे आत्मा से बिके और चरित्र से गिरे हुए कुछ लोग.

सत्ता के इस हस्तान्तरण का साक्षी बना Transfer of Power Agreement, जो कि लगभग 4000 पेजों में बनाया गया था और जिसे अगले 50 वर्षों हेतु सार्वजनिक न करने का नियम भी साथ में बनाया गया था.

सन् 1997 में इस Agreement को सार्वजनिक होने से बचाने हेतु समय से पहले ही तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री इन्द्र कुमार गुजराल ने इसकी अवधि 20 वर्ष और बढ़ा दी और यह 2019 तक पुनः सार्वजनिक होने से बच गया.

ऐसे सत्ता के हस्तान्तरण के Agreement ब्रिटिश सरकार के अधीन भारत समेत समस्त 54 देशों के साथ हुए हैं जिनमें आस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड, श्रीलंका, पाकिस्तान आदि सहित 54 देश है. यह 54 देश ब्रिटिश राज के उपनिवेश कहलाते हैं. इन 54 देशों के नागरिक आज भी कानूनी तौर पर ब्रिटेन की रियाया (प्रजा) हैं अर्थात् ब्रिटेन के ही गुलाम नागरिक हैं. इन 54 देशों के समूह को “राष्ट्रमण्डल” के नाम से जाना जाता है जिसे आप Common Wealth के नाम से भी जानते हैं अर्थात् संयुक्त सम्पत्ति.

यदि आप सबको कोई आशंका हो तो उदाहरण के तौर पर आप यूँ समझ लें कि ब्रिटेन समेत सभी ब्रिटिश उपनिवेश अथवा राष्ट्रमण्डल देशों के भारत में विदेशमन्त्री तथा राजदूत नहीं होते अपितु विदेश मामलों के मन्त्री तथा उच्चायुक्त होते हैं और ठीक इसी प्रकार भारत के भी इन देशों में विदेश मामलों के मन्त्री (Minister of Foreign Affairs) तथा उच्चायुक्त (High Commissioner) ही होते हैं.

जैसे कि भारत की विदेश मन्त्री हैं सुषमा स्वराज, तो यह सुषमा स्वराज का अधिकारिक दर्जा विदेश मन्त्री के तौर पर केवल रूस, जापान, चीन, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम आदि स्वतन्त्र देशों में ही रहता है परन्तु ब्रिटिश उपनिवेशिक अर्थात् राष्ट्रमण्डल देशों जैसे आस्ट्रेलिया, कनाडा आदि देशों में सुषमा स्वराज का अधिकारिक दर्जा Minister of Foreign Affairs का ही रहता है.

आखिर भारत जैसे गुलाम देश की नागरिक क्वीन एलिजाबेथ की विदेश मन्त्री कैसे हो सकती है ? क्योंकि यह कनाडा, आस्ट्रेलिया, भारत आदि देश तो क्वीन एलिजाबेथ के ही अधिकार क्षेत्र या मालिकाना क्षेत्र में आते हैं जिसे आजकल आप Territory के नाम से समझते हैं. इसी प्रकार उपनिवेशिक राष्ट्रमण्डल देशों में भारत का कोई राजदूत (Ambassador) नहीं होता अपितु मात्र उच्चायुक्त (High Commissioner) ही होता है.

Transfer of Power Agreement की शर्तें जो लगभग 4000 पेजों में विस्तार से लिखी गई हैं, जिसके कुछ अंश निम्नलिखित हैं:
1. गोरे हमारी भूमि को 99 वर्षों के लिये हम भारतवासियों को ही किराये पर दे गये.

2. भारत का संविधान अभी भी ब्रिटेन के अधीन है.

3. ब्रिटिश नैशनैलिटी अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत हर भारतीय, आस्ट्रेलियाई, कनाडियन चाहे हिन्दू हो, मुसलमान हो, इसाई हो, बौद्ध हो अथवा सिक्ख ही क्यों न हो, ब्रिटेन की प्रजा है.

4. भारतीय संविधान के अनुच्छेदों 366, 371, 372 व 395 में परिवर्तन की क्षमता भारत की संसद तथा भारत के राष्ट्रपति के पास भी नहीं है.

5. गोपनीय समझौतों (जिनका खुलासा आज तक नहीं किया जाता) के तहत ही हमारे देश से 10 अरब रुपये पेंशन प्रतिवर्ष महारानी एलिजावेथ को जाता है.

6. इन्हीं ’गोपनीय समझौतों के तहत् प्रति वर्ष 30 हजार टन गौ-मांस ब्रिटेन को दिया जाता है. यही वह गोपनीयता है जिसकी शपथ भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, सभी राज्यों के मुख्यमन्त्री तथा अन्य समस्त मन्त्री तथा प्रशासनिक अधिकारी लेते हैं. अतः उपरोक्त समस्त पदाधिकारी समस्त स्वतन्त्र देशों की भाँति मात्र पद की शपथ नहीं लेते अपितु “पद एवं गोपनीयता” की शपथ लेते हैं..

7. अनुच्छेद 348 के अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय व संसद की कार्यवाही केवल अंग्रेजी भाषा में ही होगी.

8. राष्ट्रमण्डल समूह के किसी भी देश पर भारत पहले हमला नहीं कर सकता. यही वजह है, हम पाकिस्तान पर आक्रमण नहीं कर सकते हैं. कारगिल में हमने सिर्फ जो जमीन पकिस्तान ने हथियाई थी, उसे वापस पाया है.

9. भारत किसी भी राष्ट्रमण्डल समूह के देश को जबरदस्ती अपनी सीमा में नहीं मिला सकता..

ऐसे बहुत से नियम एवं शर्तें लिखित रूप से दर्ज हैं Transfer of Power Agreement में और यदि भविष्य में भारत किसी भी नियम या शर्त को भंग करता है तो –

1. भारत का संविधान तत्काल प्रभाव से Null & Void हो जायेगा.

2. छद्म स्वतन्त्रता भी छीन ली जायेगी.

3. भारत में 1935 का Government of India Act तत्काल प्रभाव से लागू हो जायेगा क्योंकि उसी के आधार पर ही Indian Independence Act, 1947 का निर्माण किया गया था.

4. ब्रिटिश राज पुन: लागू हो जायेगा पूर्ण रूप से.

यदि आज कश्मीर यदि पाकिस्तान को दे दो तो भी वह ब्रिटेन की रानी का ही रहेगा. आज सिक्खों को खालिस्तान दे भी दिया जाए तो वह भी रानी का ही रहेगा. पूरा पाकिस्तान, बर्मा, बांग्लादेश, श्रीलंका भी रानी का ही है. भारत आज भी क्वीन एलिजाबेथ के अधीन है. यह कहना छोड़िए कि हम स्वतन्त्र हैं. आज तक बिना रक्त बहाये किसी को स्वतन्त्रता नहीं मिली.

भारत की जनता को छद्म स्वतन्त्रता और गाँधी-नेहरू आदि की झूठी कहानियाँ सुना-सुनाकर देश के नौजवानों को खोखला कर दिया गया है.

नई पीढ़ी अपने कैरियर और मौज-मस्ती को लेकर आत्म-मुग्ध है. हाथों में झूलते बीयर के गिलास और होठों पर सुलगती सिगरेट के धुएँ में उड़ता पराक्रम और शौर्य की विरासत नष्ट-सी होती दिखाई दे रही है. आज चाणक्य भी आ जायें तो निस्संदेह उन्हें सम्पूर्ण भारत देश में एक भी योग्य पराक्रमी पुरुष प्राप्त नहीं होगा. लाखों-करोड़ों युवाओं के रूप में कभी यह राष्ट्र “ब्रह्मचर्य की शक्ति” के रूप में समस्त विश्व में प्रसिद्ध था और आज विडम्बना देखो कि उसी देश के वीर्यवान व्यक्ति अपने बल-बुद्धि-प्रज्ञा समान ओज को युवावस्था में ही नष्ट कर डालते हैं.

बचा लीजिये इस नष्ट होते पवित्र भूमि स्वरूप इस राष्ट्र को. अपने नेताओं और देश के तथाकथित कर्णधारों से सवाल जरूर पूछिये कि-

हम परतन्त्र क्यों रहें ?

हम ब्रिटेन के नागरिक क्यों बने रहें ?

हम ब्रिटेन के गुलाम क्यों बने रहें ?

राष्ट्रमण्डल का विरोध करें.

सत्ता-हस्तान्तरण के अनुबन्ध का विरोध करें.

क्वीन एलिजाबेथ की दासता का विरोध करें.

जो लड़ना ही भूल जायें वे न तो स्वयं सुरक्षित रहेंगे और न ही अपने राष्ट्र को सुरक्षित रख सकेंगे.

सन्दर्भ लिंक :

Indian Independence Act 1947
http://www.legislation.gov.uk/ukpga/Geo6/10-11/30
.
British Nationality Act 1947
http://lawmin.nic.in/legislative/textofcentralacts/1947.pdf
.
British Nationality Act 1948
http://www.uniset.ca/naty/BNA1948.htmr

Indian Independence Act 1947

An Act to make provision for the setting up in India of two independent Dominions, to substitute other provisions for certain provisions of the Government of India Act 1935, which apply outside those Dominions, and to provide for other matters consequential on or connected with the setting up of tho…

WWW.LEGISLATION.GOV.UK



Author: Rohit Sharma
We have a experienced team for done your work nicely,

2 Comments

Leave a Reply