‘चक्रव्यूह’ के सशक्त अभिनेता ‘गोविन्द सूर्यवंशी’ का जाना

जब से ख़बर सुनी तभी से ऐसा लग रहा है जैसे मेरे ही अस्तित्व में भीतर चीखने वाला कोई चरित्र आज खामोश हो गया हो. चेचक दाग़ी चेहरा, दरम्याना कद, ख़ूबसूरती ऐसी कि कैमरे का कोई भी एंगल इस्तेमाल कर लो -सब फेल. चिकने चुपड़े चेहरों को देखने टिकट खरीदते हुजूम वाले माहौल में ओमपुरी ने दर्शकों को ‘अभिनय और मुद्दे’ की वजह से सिनेमा के टिकट खरीदने वाला का एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण वर्ग भारतीय समाज में रचा.
पर्दे पर उनका किरदार जैसे ही आता कि दर्शक अपलक उसे देखने, सुनने और गुनने को मजबूर होते, हर आदमी के भीतर बैठे उसी किरदार को वह छू लेने की अदम्य उर्जा रखते थे, दरअसल अभिनय इसे ही कहते हैं जो ओमपुरी परदे पर करते थे. इतनी सहजता से, ऐसी सरलता से कि देखने वाला खुद को ओमपुरी समझने लगे. उनकी पहली कमर्शियल फिल्म ‘अर्ध सत्य’ मैंने अपने छात्र जीवन में सिनेमा हाल जाकर देखी थी और तभी से रिलेट कर लिया था. दर्शक और अभिनेता के बीच का यह रिश्ता अजर और अमर होता है, दर्शक और अभिनेता आते जाते रहते है. ओमपुरी ने बस अपना काम आज मुकम्मिल कर लिया.
सलाम ओमपुरी…तुम ऐसा काम कर गए कि जब तक ज़िन्दगी इस पृथ्वी पर है, तुम भी जियोगे. तुम्हारी आवाज कुहासे के हर सन्नाटे को हमेशा तोड़ेगी.

Shamsad ke wall se



Author: Rohit Sharma
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